खतरा झांक रहा है बसंतपुर सराय की जर्जर दीवारों से

गोरखपुर किसी देश या शहर का इतिहास वहां के वर्तमान और भविष्य का नींव होता है। कहते हैं जिस जगह का इतिहास जितना गौरवमयी होगा उसका मान उतना ही ऊंचा होगा। सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक के तौर पर ऐतिहासिक धरोहरों को सुरक्षित और संरक्षित करना हर जिम्मेदार शहरी का धर्म है। तो आइए उसी धर्म का पालन करते हुए नज़र डालें अपने शहर और आसपास की ऐतिहासिक धरोहरों पर जिन्हें संरक्षित कर हम अपनी अगली पीढ़ियों से गर्व से कह सकेंगे-ये है हमारी विरासत।
अब नहीं चेते तो 408 साल पुरानी राजा बसंत सिंह की विरासत ढह जाएगी। तीन एकड़ में फैली बसंतपुर किले और बाद में सराय के रूप में तब्दील हो गई इमारत का बुरा हाल है। पिछले साल बारिश में इसकी एक दीवार गिर गई थी। तब एक परिवार के दस लोग बाल-बाल बच गए थे। इस वक्त परिसर के कई कमरों की छतों में बन आई दरारों से खतरा झांक रहा है।
परिसर के 68 कमरों में करीब डेढ़ सौ परिवार रहते हैं। परिसर में चारों तरफ गंदगी का राज है। खुली नालियों का कचरा यहां-वहां बह रहा है। एक नलकूप है जिसके कमरे की छत की हालत इतनी जर्जर है कि वहां रहने वाले डरे हुए हैं। दरारें दिखाते हुए लोग कहते हैं,‘यह कभी भी गिर सकती है।’ चारों तरफ मौजूद किले की चहारदीवारी, बरजों और परिसर के ज्यादातर घरों का यही हाल है।
इंटेक के प्रस्ताव पर भी चढ़ गई धूल की परत
‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ (इंटेक) ने 2014 में बसंतपुर किले का सर्वे किया था। इसके आजीवन सदस्य अचिन्त्य लाहिड़ी और सह समन्वयक डा.मुमताज खान ने बताया कि बसंतपुर किले के जीर्णोद्धार के प्रस्ताव के तीन भाग थे। पहला-सराय के ऐतिहासिक स्वरूप के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। दूसरा- इसकी मरम्मत के लिए वही मटेरियल इस्तेमाल होगा जो इसे बनाने में किया गया था। तीसरा- इस धरोहर को इस तरह विकसित किया जाएगा कि रखरखाव के खर्च के लिए किसी और पर निर्भर न रहना पड़े। योजना थी कि बसंतपुर किले को दिल्ली हाट की तर्ज पर विकसित किया जाए जहां देश के अलग-अलग प्रदेशों के कॉटेज हों, स्थानीय व्यंजनों के ठेले लगें और हस्तशिल्प और लोककलाओं को मंच मिले। लेकिन पिछले चार वर्षों में इस प्रस्ताव पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सका।
शहर की सुरक्षा के लिए बनवाया था किला
बसंतपुर किला राजा बंसत सिंह ने शहर की सुरक्षा के लिए बनवाया था। वैसे इसके परिसर में रहने वाले ज्यादातर लोग ज्यादातर किले की ऐतिहासिकता से अन्जान हैं। कोई कहता है कि एक मुगल बादशाह ने इसे बनवाया था। कोई अंग्रेज सिपाहियों की रिहाइश की बात करता है। जबकि इंटेक की रिपोर्ट के हवाले से अचिन्त्य लाहिड़ी बताते हैं कि ‘राजा सत्तासी बसंत सिंह ने इसे 1610 में बनवाया। उस दौर में राप्ती और रोहिन नदी यहीं पास से होकर गुजरती थीं।1680 में किले की मरम्मत की गई। उसके बाद यह किला मिलिट्री बेस बन गया। 1801 में अवध के नवाब ने इसे ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंप दिया। अंग्रेज सैनिक और अफसरों ने इसे सराय का रूप दिया। वे यहां ठहरने और मनोरंजन के लिए आते थे।’
इंटेक की पहल को आगे बढ़ाऊंगा: महापौर
महापौर सीताराम जायसवाल ने कहा है कि वह इंटेक की पहल को आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने कहा कि बसंतपुर किला शहर की ऐतिहासिक धरोहर है। इसे हर कीमत पर बचाया, सजाया और संवारा जाएगा। इंटेक के सह समन्वयक पी.के.लाहिड़ी ने इस दिशा में काफी काम किया था। दुर्भाग्य से पिछले दिनों उनका स्वर्गवास हो गया। इस मामले में अब तक जो कुछ किया गया है उसकी जानकारी करके कार्यवाही को आगे बढ़ाया जाएगा। बसंतपुर किले की जगह विकसित हो गई तो अच्छा पर्यटन स्थल बनेगी।
मैं यहां वर्षों से रह रही हूं। शायद इस जगह को किसी मुगल बादशाह ने बनवाया था लेकिन आज इसकी हालत बेहद खराब है।
शाहजहां, निवासी बसंतपुर सराय
परिसर के ज्यादातर घरों की बुरी हालत है। अधिकारी देखकर चले जाते हैं। कोई यहां के लिए कुछ नहीं करता।
अमीरून, निवासी बसंतपुर सराय
यह ऐतिहासिक धरोहर है। हम चाहते हैं कि इसका संरक्षण किया जाए। अभी यहां लोग बहुत बुरी हालत में रह रहे हैं।
आशिक अली, निवासी बसंतपुर सराय
मैं अपने जन्म से यहीं पर हूं। मेरे पिता और उसके पहले भी हमारे परिवार के लोग यहीं रहे। इस जगह का विकास होना चाहिए।
सफदर अली, निवासी बसंतपुर सराय