लखनऊ। 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मामला" या "मझवार आरक्षण" इन दोनो में पूर्ववर्ती सरकारों ने और वर्तमान सरकार ने निषाद वंशीय मछुआ समुदाय को गुमराह करने का कार्य किया है। जब निषाद पार्टी मझवार आरक्षण की बात करती है तो उसी के साथ साथ 17 जातियों का भी मामला भी उजागर हो जाता है। कई प्रयासों के बाद हम ये समझाने में सफल हुए की मछुआ समाज का संवैधानिक अधिकार जो है वो मझवार जाति के नाम से प्रमाण पत्र जारी होना है। 17 अतिपिछड़ी जातियो का मामला हमेशा से ही विवादास्पद रहा है और 17 में से 15 तो निषाद समाज की उपजातियां ही है ये क्यों हम भूल जाते है। भर और राजभर को जोड़ के इस सूची को भी असंवैधानिक करने का कार्य पूर्ववर्ती समाजवादी सरकार ने किया। अब हमे ये समझने की जरूरत है की जब हम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में क्रमशः 1950 और 2000 से बिना किसी पर्यायवाची/उप-जाति के "मझवार" अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित किया गया है। इस समुदाय के सदस्य अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र और आरक्षण जैसे परिणामी लाभों के हकदार हैं। जाति प्रमाण पत्र जारी करने और सत्यापन का विषय संबंधित राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों के पास है। यह जानकारी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री ए. नारायणस्वामी ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दिया था।