प्रयागराज। कटरा निवासी मनीषा गुप्ता की पित्त की थैली में पथरी का आपरेशन बेली अस्पताल में हुआ। आपरेशन के तत्काल बाद आइसीयू की आवश्यकता पड़ी तो मरीज को प्राइवेट अस्पताल भेज दिया गया। इलाज में करीब एक लाख रुपये खर्च हो गए। इससे मध्यम वर्गीय परिवार पर काफी आर्थिक बोझ पड़ा।

पिछले माह जिले के एक बड़े अधिकारी की पत्नी का प्रसव स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में हुआ था। उससे पहले उन्हें जिला महिला चिकित्सालय यानी डफरिन अस्पताल ले जाया गया था। वहां आइसीयू न होने के कारण अधिकारी ने उनका प्रसव एसआरएन में कराना उचित समझा। ये दो उदाहरण यह बताने के लिए काफी हैं कि शहर के बड़े सरकारी अस्पतालों की क्या दशा है।

डफरिन अस्पताल, मोतीलाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय यानी काल्विन और बेली अस्पताल में भी आइसीयू नहीं है। जबकि इन तीनों ही अस्पतालों में छोटे-बड़े आपरेशन होते हैं। डफरिन अस्पताल में तो प्रत्येक माह करीब 35 गर्भवती के सीजेरियन प्रसव होते हैं। कभी-कभी केस बिगड़ने पर आइसीयू की जरूरत पड़ती है तो फौरन एसआरएन अस्पताल के लिए रेफर कर दिया जाता है।

आइसीयू की अवधारणा ही नहीं बेली, डफरिन और काल्विन अस्पताल में अब तक आइसीयू की अवधारणा ही नहीं बन पाई। जबकि बेली अस्पताल 199 बेड का, काल्विन और डफरिन भी करीब 200 बेड की क्षमता वाले अस्पताल हैं। डफरिन अस्पताल सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां प्रत्येक दिन प्रसव कराए जाते हैं।

बेली अस्पताल की मुख्य चिकित्साधीक्षक डा. शारदा चौधरी ने कहाकि आइसीयू के लिए बड़ा सेटअप चाहिए। फौरी तौर पर किसी गंभीर केस को नियंत्रित रखने के लिए साधारण आइसीयू है। कहाकि महाकुंभ के कार्यों के तहत 24 बेड के आइसीयू और 16 बेड के एचडीयू का प्रस्ताव है। उम्मीद है अस्पताल को यह सुविधाएं मिलेगी।