प्रीतम लोधी और धीरेंद्र शास्त्री ने बिगाड़ा भाजपा का खेल!
- बुंदेलखंड, बघेलखंड और चंबल में ओबीसी और ब्राह्मण भाजपा से नाखूश
- 58 फीसदी आबादी की नाराजगी 2023 में भाजपा को पड़ सकती है भारी
भोपाल। 2023 में 200 सीटें जीतने का टारगेट लेकर चुनावी तैयारी में जुटी भाजपा के लिए एक नेता और एक कथावाचक परेशानी का सबब बन गए हैं। नेता हैं भाजपा से निष्कासित प्रीतम लोधी और कथावाचक हैं धीरेंद्र शास्त्री। दोनों के कारण भाजपा ओबीसी बनाम ब्राह्मण की सियासत में इस कदर फंस गई है कि प्रदेश की 58 फीसदी आबादी भाजपा से नाराज हो गई है। खासकर बुंदेलखंड, बघेलखंड और चंबल में ओबीसी और ब्राह्मण भाजपा से नाखुश नजर आ रहे हैं। यह नाराजगी विधानसभा चुनाव में भाजपा पर भारी पड़ सकती है। मप्र में विधानसभा चुनाव होने में एक साल से भी कम का वक्त बचा है। भाजपा प्रदेश में सरकार बनाने के लिए 51 फीसदी वोट का टारगेट लेकर चल रही है। लेकिन प्रदेश का सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी (52 फीसदी आबादी) उससे नाराज है। इसकी एक वजह ओबीसी आरक्षण और दूसरी वजह ओबीसी समाज से आने वाले प्रीतम लोधी का अपमान और पार्टी से उनकी बर्खास्तगी है। वहीं ब्राह्मण इसलिए नाराज हैं कि प्रीतम लोधी लगातार कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री के साथ अन्य पंडितों और कथावाचकों के खिलाफ आग उगल रहे हैं और सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है।
भाजपा से छिटक रहा ओबीसी वर्ग
प्रदेश में लगभग 52 फीसदी आबादी वाले ओबीसी अब भाजपा की चिंता बढ़ा रहे हैं। भाजपा 2003 में ओबीसी वोटों के समर्थन से सत्ता में आई थी खासकर लोधी के समर्थन से जिसका मप्र की 40 सीटों पर मजबूत प्रभाव है। जिसकी मदद से उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। बाद में उनकी जगह एक अन्य ओबीसी नेता बाबूलाल गौर को लाया गया और गौर की जगह शिवराज सिंह चौहान को लिया गया। लगातार तीन बार भाजपा की जीत सुनिश्चित करने में ओबीसी मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई। जानकारों का कहना है कि भाजपा को इस मुद्दे से निपटने के लिए मजबूत रणनीति बनानी होगी क्योंकि यह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए खतरनाक हो सकता है। इस बीच भाजपा ने नुकसान को नियंत्रित करने के लिए ग्वालियर से पूर्व विधायक नारायण सिंह कुशवाहा को पार्टी के ओबीसी विंग के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में घोषित किया। लेकिन इसके बाद भी ओबीसी वर्ग भाजपा से छिटक रहा है। यह मिशन 2023 के लिए घातक हो सकता है।
पहली बार ब्राह्मणों की मोर्चाबंदी
मप्र में पहली बार ब्राह्मण समुदाय ने राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी करनी शुरू की है। मप्र में ब्राह्मण समुदाय की कुल आबादी का लगभग 6 प्रतिशत हैं। यह वर्ग भी भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। जिस तरह प्रीतम लोधी के समर्थन में ओबीसी महासभा और भीम आर्मी आए और कहा कि उनका इरादा गलत नहीं था और स्वयं घोषित आध्यात्मिक नेताओं द्वारा उन्हें गाली देने के लिए अपना विरोध दर्ज कराया। उससे ब्राह्मण वर्ग भाजपा से नाराज है। बताया जाता है कि भाजपा के कई सर्वण नेता भी ब्राह्मणों की मोर्चा बंदी को समर्थन दे रहे हैं।
भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं
बुंदेलखंड, बघेलखंड और चंबल में जिस तरह ओबीसी और ब्राह्मण भाजपा से नाखूश हैं और विरोध जता रहे हैं यह भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। पिछले 17 वर्षों में विशेष रूप से पिछले दो वर्षों में 2018 में हारने के बाद भाजपा नेताओं ने यह साबित करने के लिए विशेष प्रयास किए कि भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए काम करती है। उन्हें ओबीसी का मजबूत समर्थन था और विशेष योजनाओं के माध्यम से उन्होंने एससी और एसटी समुदाय को लुभाने की कोशिश की। लेकिन ओबीसी का यह विरोध पार्टी के लिए महंगा साबित हो सकता है। 1990 में यूपी में भाजपा का उदय अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के लिए गठित मंडल आयोग के साथ हुआ। उन्होंने मंडल और कमंडल के साथ जाने का फैसला किया। 2003 में उन्होंने एमपी में दोहराया और इसका लाभ मिला। 2018 में भाजपा ने ओबीसी वोटरों के सहारे कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी क्योंकि ऊंची जाति पार्टी से खफा थी। अब 2023 में वे ओबीसी मतदाताओं के केवल एक वर्ग को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि सत्ता विरोधी लहर पहले से ही एक कारक है।