Ganga Flow Reverse In Kashi : हिन्दू धर्म में गंगा नदी को सबसे पवित्र और पूज्यनीय नदी माना जाता है. इसे माता भी कहा गया है और इनके घाटों पर आरती भी की जाती है. ऐसा माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. यहां तक कि किसी जगह को पवित्र करने के लिए गंगा जल का छिड़काव किया जाता है. पूजा के लिए आपके गंगा जल का उपयोग होते खूब देखा होगा. वहीं इसके जल को घरों में भी रखा जाता है. इसकी घरों में भी पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि घर में गंगाजल रखने से नकारात्मकता नहीं आती. लेकिन, क्या आप जानते हैं काशी उर्फ वाराणसी में गंगा उल्टी क्यों बहती है? और उसके पीछे का रहस्य है? आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिष आचार्य पंडित योगेश चौरे से.

गंगा कहां बहती है उल्टी?
काशी में स्थित मणिकर्णिका घाट से तुलसी घाट तक गंगा उल्टी बहती है, यह क्षेत्र करीब डेढ़ किलोमीटर का है. इस बीच दोनों घाटों के बीच करीब 45 घाट और पड़ते हैं. यहां करीब आधे से 1 घंटे तक गंगा का बहाव उल्टा होता है.

उल्टी गंगा का धार्मिक कारण
पुराणों के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से धरती पर आईं तब वे एक ही स्थान पर जा रही थीं लेकिन उसी समय वाराणसी के घाट पर भगवान दत्तात्रेय तपस्या कर रहे थे और जब गंगा वहां से गुजरीं तो इससे दत्तात्रेय के कमण्डल और कुशा आसन भी गंगा के साथ बह गए और करीब डेढ़ किमी आगे आने के बाद मां गंगा के साथ भगवान दत्तात्रेय के आसन और कुशा बहकर आ गए हैं और फिर वे उन्हें लौटाने पहुंची और इसके बाद उन्होंने क्षमा मांगी. ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान दत्तात्रेय ने मां गंगा को क्षमा किया तो वे फिर से सामान्य रूप से बहने लगीं.


क्या है इसका भौगालिक कारण?
गंगा नदी का उल्टा बहने का रहस्य भूगोल में मिलता है. जिसके अनुसार काशी में गंगा दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, लेकिन जब गंगा नगर में प्रवेश करती हैं तब उसका बहाव धनुष के आकार का हो जाता है. इससे गंगा दक्षिण से आकर पहले पूर्व दिशा की ओर मुड़ती हैं और फिर पूर्वोत्तर की ओर. ऐसा इस स्थान के घुमावदार होने की वजह से होता है, जिससे वहां भंवर बनता है. इससे लहरें उठती हैं और भंवर से टकराने के कारण लहरें डेढ़ किलोमीटर उल्टी बहती हैं.